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बाबूक खिस्सा – भाग 7 : पैंचा लगाउ – पैंचा सधाउ ......
एक टा राजा छलाह । ओ अपन प्रजा के बड नीक जेकां ध्यान रखैत छलाह । राजा साहेब रोज़ राति क वेश बदलि क अपन राज्य मे घुमैत छलाह ।
एक राति राजा घुमैत छलाह त देखलखिन जे – एकटा गरीब आदमी घूर तपैत रहै तखने ओकर पत्नी अबि क कहलकै.... चलु भोजन क लिय ।
पति पुछलकै – पैंचा लगेलहु ?
पत्नी कहलखिन – हॅं ।
पति पुछलकै – पैंचा सधेलहुं ?
पत्नी कहलखिन – हॅं ।
पति कहलकै – त’ चलु, सहस्त्रमुखक दीप जराउ ग हम अबैत छी ।
पत्नी चलि गेलिह ।
राजा नुका क सबटा गप्प सुनैत रहैथ । राजा सोचलाह जे ई गरीब आदमी पैचा लगैबतो अछि, पैंचा सधैबतो अछि आ सहस्त्रमुखक दीप बारि क खाइत अछि... हम राजा छी से एक-दू नहि त पांच मुखक दीप जरबैत छी... आ इ सहस्त्र मुखक दीप जरबैत अछि आ इ सब दिन पैंचा लगबैत-सधबैत अछि... एकरा एतेक धन कतय स’ अबैत छैक ?
अवश्य इ कतहु चोरि करैत होएत । एकरा सजा भेटबाक चाही ।
भोरे राजा दरबार मे ओहि आदमी के बजेलाह
दरबार मे राजा ओकरा पुछलखिन्ह – तों कोन काज करैत छें ?
ओ कहलकैन्ह – महाराज, हम मजदूरी करैत छी ।
राजा बजलाह – तों झूठ बजैत छें ।
ओ कहलकैन्ह – नइ महाराज, हम झूठ नहि बजैत छी ।
राजा तमसा क पुछलखिन्ह - तहन तोरा रोज कतय स पैंचा लगबैत आ सधबैत छें ? सहस्त्रमुखक दीप बारि क भोजन कतय स करैत छें ?
ओ मजदूर विनती क’ क पुछलकैन्ह त राजा रातुक सब वृतांत कहलथिन्ह ...
ओ मजदूर हॅंसय लागक आ बाजल – महाराज हम सब मजदूरी क क गुजर करैत छी तैयो अपन संस्कार स हटि नहि सकलहु... राति जे हम अपन पत्नी कहलियै से पैंचा लगेबाक अर्थ भेलै जे – हमर दू टा छोट धिया-पूता अछि तकरा भोजन करेलाए आ पैंचा सधेबाक माने भेलै जे बूढ माए-बाप के भोजन करेलाए । हमर घरबाली जखन कहलक हॅं, तकर बाद हम कहलियै जे सहस्त्रमुखक दीप जरबै लेल । सरकार, हमरा सब के लालटेम-डिबिया कतय स एतै ? हम सब त एक मुठी पुआर जरा क ओकरे इजोत मे खा लैत छी । हमरा सब लेल वाएह सहस्त्रमुखक दीप भेलै ।
सब दरबारी ओकर जयजयकार केलक आ राजा ओकरा बहुते रास ईनाम देलखिन्ह ।
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