Sunday, August 28, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 1, गप्पक अर्थ



एक बेर एकटा राज दरबार मे नाच होईत रहैक, ताइ दिन नाच भरि रातुक होई, ब्रह्ममुहुर्त स कनि पहिले नटुवा के औंघी लागय गेलैक ई देखि नाच मे जे मूलगैन रहैक से ईशारा मे कहलकै - गये रे बहुतरे काले संजनम मन रंजनम.......आ नटुवा गाबय लागल ......


ई सुनि राजकुमार अपन गला के हार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....
राजकुमारी अपन गिरमोहार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....

सब के आश्चर्य भेलैक....

जहन पुछल गेलै त राजकुमार कहलकै ... 'हमर बाबु (राजा) 80 बरखक बूढ भ गेलाह तैयो एखन तक हमरा राजा नहि बनेलाह, आइ हम सोचने रहि जे राति मे तलवार स काटि दितियैन्ह... परंचु अहि नटुवा के शब्दक अर्थ हमरा लगि गेल'।

तकर बाद राजकुमारी स पुछल गेल त ओ कहलथि 'हमरा मंत्रीक बेटा स प्रेम अछि परंतु हमर बाबु (राजा), हमर विवाह के विरुद्ध छथि आ आइ हम दुनू गोटा भागि जैतौं मुदा ई नटुवा हमरा कहलक ....... हमरा अर्थ लागि गेल'


तें किछु लोक के गप्पक अर्थ आ लक्ष्मीनाथ गोसईं के पांतिक जे बुझाए से ने मनुख......



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