एक बेर एकटा राज दरबार मे नाच होईत रहैक, ताइ दिन नाच भरि रातुक होई, ब्रह्ममुहुर्त स कनि पहिले नटुवा के औंघी लागय गेलैक ई देखि नाच मे जे मूलगैन रहैक से ईशारा मे कहलकै - गये रे बहुतरे काले संजनम मन रंजनम.......आ नटुवा गाबय लागल ......
ई सुनि राजकुमार अपन गला के हार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....
राजकुमारी अपन गिरमोहार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....तकर बाद राजकुमारी स पुछल गेल त ओ कहलथि 'हमरा मंत्रीक बेटा स प्रेम अछि परंतु हमर बाबु (राजा), हमर विवाह के विरुद्ध छथि आ आइ हम दुनू गोटा भागि जैतौं मुदा ई नटुवा हमरा कहलक ....... हमरा अर्थ लागि गेल'
तें किछु लोक के गप्पक अर्थ आ लक्ष्मीनाथ गोसईं के पांतिक जे बुझाए से ने मनुख......
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