Sunday, August 28, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 2, जहिया स काल धेलक ......


एक टा जोतखी जी रहैथ । प्रकाण्ड विद्वान । विद्वता मे समस्त राज्य मे हुनकर धाख चलैन्ह.... ।

भादव मास ... सन्ध्या काल... जोतखी जी लोटा ल क पैखाना दिस विदा भेलाह...

बुनछेक भेल रहै परंचु मेघ लागल रहै... गामक बाहर रस्ता कात मे मिरचैया गाछक झांखुर लग धोती खोलि बैसि गेलाह .....

जहां बैसला कि बोन मे नुकाएल साप पाछु मे काटि लेल्कैन्ह...

जोतखी जी धरफराएल गामक कन्हा भगता लग गेलाह ....

ताई दिन त गामक भगता सब बेसी मुर्खे होईत छल....

भगता झारय लग्लैन्ह आ कहैन्ह....

केहेन बेबेकूफ छी .... कुठाम मे साप काटि लेलक ..... जोतखी जी चुप रहला ....

भगता फेर हसैत कहल्कैन्ह.... धुर जोतखी जी केहेन बेबकूफ छी...... जोतखी जी फेर चूप.... ......

तेसर बेर भगता फेर कहल्कैन्ह ....

अहि बेर जोतखी जी के नहि रहल गेलैन्ह.........

कहलखिन्ह "हमरा सन विद्वान अहि राज मे नहि छौ ....... परंचु जहन स' ई काल ध' लेलकाए तहन स' टीके हम बेबकूफ भ गेलहु"

कहैत.... जोतखी जी विदा भ गेलाह .............



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