Wednesday, April 28, 2010

आहाँ चिंता जुनि करू
आगि लगै चाहे बज्जर खसै
ठनका ठनकै चाहे पानि झहरै
अपने बाटे चलैत रहू
आहाँ चिंता जुनि करू

पुरखाक चाहे पजेबा उखरए
थारिक सोहारी चाहे कुक्कूर खोखरए
नोन तेल मे चाहे पासंगे भेटए
दालिएक झोर स’ काज चलबैत रहू
आहाँ चिंता जुनि करू

हरदम नव-नव अन्वेषन हो
कर्मक जतेक छिद्रान्वेषन हो
सफलता-असफलताक चाहे झौहरि हो
कर्मक लाठी कसियौने रहू
आहाँ चिंता जुनि करू

फाटल अंगा वा काटल जेबी हो
टूटल पनही वा रुसल देवी हो
घर मे चाहे मुसरी दण्ड घिचए
फुफरियाएल ठोर के जीह स’ चटैत रहू
आहाँ चिंता जुनि करू

मित्र कतबो बज़ारू भ’ जाइथ
लोक-वेद ‘भजारे’ बुझथि
खिधांशक चाहे अगिनबान चलाबथि
अपना देह के नेरबैत रहू
आहाँ चिंता जुनि करू


काश्यप कमल
28.04.2010