Wednesday, September 28, 2011

बाबूक खिस्सा – भाग 7 : पैंचा लगाउ – पैंचा सधाउ ......


एक टा राजा छलाह । ओ अपन प्रजा के बड नीक जेकां ध्यान रखैत छलाह । राजा साहेब रोज़ राति क वेश बदलि क अपन राज्य मे घुमैत छलाह ।

एक राति राजा घुमैत छलाह त देखलखिन जे – एकटा गरीब आदमी घूर तपैत रहै तखने ओकर पत्नी अबि क कहलकै.... चलु भोजन क लिय ।

पति पुछलकै – पैंचा लगेलहु ?

पत्नी कहलखिन – हॅं ।

पति पुछलकै – पैंचा सधेलहुं ?

पत्नी कहलखिन – हॅं ।

पति कहलकै – त’ चलु, सहस्त्रमुखक दीप जराउ ग हम अबैत छी ।

पत्नी चलि गेलिह ।

राजा नुका क सबटा गप्प सुनैत रहैथ । राजा सोचलाह जे ई गरीब आदमी पैचा लगैबतो अछि, पैंचा सधैबतो अछि आ सहस्त्रमुखक दीप बारि क खाइत अछि... हम राजा छी से एक-दू नहि त पांच मुखक दीप जरबैत छी... आ इ सहस्त्र मुखक दीप जरबैत अछि आ इ सब दिन पैंचा लगबैत-सधबैत अछि... एकरा एतेक धन कतय स’ अबैत छैक ?

अवश्य इ कतहु चोरि करैत होएत । एकरा सजा भेटबाक चाही ।

भोरे राजा दरबार मे ओहि आदमी के बजेलाह

दरबार मे राजा ओकरा पुछलखिन्ह – तों कोन काज करैत छें ?

ओ कहलकैन्ह – महाराज, हम मजदूरी करैत छी ।

राजा बजलाह – तों झूठ बजैत छें ।

ओ कहलकैन्ह – नइ महाराज, हम झूठ नहि बजैत छी ।

राजा तमसा क पुछलखिन्ह - तहन तोरा रोज कतय स पैंचा लगबैत आ सधबैत छें ? सहस्त्रमुखक दीप बारि क भोजन कतय स करैत छें ?

ओ मजदूर विनती क’ क पुछलकैन्ह त राजा रातुक सब वृतांत कहलथिन्ह ...

ओ मजदूर हॅंसय लागक आ बाजल – महाराज हम सब मजदूरी क क गुजर करैत छी तैयो अपन संस्कार स हटि नहि सकलहु... राति जे हम अपन पत्नी कहलियै से पैंचा लगेबाक अर्थ भेलै जे – हमर दू टा छोट धिया-पूता अछि तकरा भोजन करेलाए आ पैंचा सधेबाक माने भेलै जे बूढ माए-बाप के भोजन करेलाए । हमर घरबाली जखन कहलक हॅं, तकर बाद हम कहलियै जे सहस्त्रमुखक दीप जरबै लेल । सरकार, हमरा सब के लालटेम-डिबिया कतय स एतै ? हम सब त एक मुठी पुआर जरा क ओकरे इजोत मे खा लैत छी । हमरा सब लेल वाएह सहस्त्रमुखक दीप भेलै ।

सब दरबारी ओकर जयजयकार केलक आ राजा ओकरा बहुते रास ईनाम देलखिन्ह ।

Monday, September 26, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 6 : अकिलक मोल ..........

एकटा राज्य मे वृद्ध राजा छलाह । हुनकर मंत्रीमण्डल मे सबस बेसी दरमाहा एक टा बुढहा मंत्रीजी के छलैन्ह । दरबारक किछु अपेक्षाकृत युवा मंत्रीगण के एकटा बात अखरैत छलैन्ह जे - सबटा काज हम सब करैत छी तैयो हमरा सब के कम दरमाहा आ इ बुढ्हा मंत्री कोनो काज नइ करैत छथि, खाली राजा साहेब लग गप्प दैत रहैत छथिन्ह, तैयो, सबस’ बेसी दरमाहा पबैत छथि संगहि राजा सहेब हुनकर गप्प बेसी मानबो करैत छथिन्ह । अहि बात पर सब दरबारी सब मे घोल-फचक्का होमय लागल । एक दिन सब मिलि क भरल राजदरबार मे अहि प्रश्न के उठौलक..... राजा साहेब बड गम्भीर भय कहलथिन्ह जे काइल्ह अहि हम एकर प्रमाण देब । दरबार खतम भ गेल ।

भोर भेने दरबार लागल । राजा प्रतिवादी युवा मंत्री के आ बुढ्हा मंत्री के अलग अलग कमरा मे बैसा देलथिन्ह । सबस पहिने प्रतिवादी युवा मंत्री के बजेलाह आ कहलखिन जे जाउ आ राजमहल के पछुवार मे नारक टाल छै ओहि मे एकटा पिलिनिया के बच्चा भेल छै कने देखने अबियौ ।

युवा मंत्री गेलाह आ कने काल मे घुमि क वापस एलाह ।

राजा पुछलखिन्ह ‘देखलियै ?’

युवा मंत्री – जी महाराज, ठीके कुक्कूर के बच्चा भेल छै महाराज ।

राजा – काएक टा छै ?

युवा मंत्री – जा से त’ गनबे नहि केलइयै ।

युवा मंत्री फेर दौड क गेलाह आ आबि क’ कहलखिन – महारज तीन टा चितकबरा, दू टा गोला आ एक टा उज्जर छै।

राजा – ओहि मे काएक टा पिलिनिया आ काएक टा पिल्ला छै ?

युवा मंत्री – जा से फरिछा क देखबे नहि केलियै ।

युवा मंत्री फेर दौड क गेलाह आ आबि क कहलखिन – महाराज, पांच टा पिलिनियां आ एक टा पिल्ला छै।

राजा – बिख लगै बला काएक टा छै आ बिना बिख बला काएक टा छै ?

युवा मंत्री फेर दौड क गेलाह आ आबि क कहलखिन – महाराज, तीन टा के बिख लगतै आ तीन टा के बिख नहि लगतै ।

राजा – काएक टा पिल्ला के बिख लगतै आ काएक टा पिलिनिया के बिख लगतै ?

युवा मंत्री फेर दौड क जेबाक लेल बढय लगला त राजा रोकि देलखिन आ कहलखिन बैस जाउ । युवा मंत्री बैस गेलाह ।

तकर बाद राजा बुढहा मंत्री के दरबार मे बजेलाह आ कहलखिन जे मंत्रीजी राजमहल के पछुवार मे जे नारक टाल छै ओहि मे एकटा पिलिनिया के बच्चा भेल छै कने देखने अबियौ ।

बुढहा मंत्री गेलाह आ कने काल मे घुमि क वापस एलाह । राजा पुछलखिन्ह – मंत्री जी देखलियै ?

बुढहा मंत्री – जी महाराज, देखलियै । गोला पिलिनिया के करीब पांच-छ्: दिन पहिने बच्चा भेल हेतैक । तीन टा चितकबरा, दू टा गोला आ एक टा उज्जर रंगक छै । पांच टा पिलिनियां आ एक टा पिल्ला छै। तीन टा के बिख लगतै जै मे दू टा पिल्ला आ एक टा पिलिनिया आ बांकी तीन टा के बिख नहि लगतै । लगैत अछि जे कोनो विदेशी कुक्कूर स अहि पिलिनियां के .........

राजा बीच मे रोकि देलखिन आ दरबारी सब स पुछलखिन जे आहां आब बुझलियै जे बुढहा मंत्रीजी के सबस’ बेसी दरमाहा किएक ? आबो ककरो कोनो कोनो प्रश्न ?

सब दरबारी महाराज के जयकार क उठल आ युवा मंत्री के मूह लटैक गेलैन्ह ....

Thursday, September 22, 2011

बाबूक खिस्सा – भाग 5 – पढबे टा नहि करी ओकरा गुणबो करी ....


एक टा आदमी छलाह । हुनका आध्यात्मिक किताब पढै मे बड मोन लगैत रहैन्ह । धिरे-धिरे ओ बाबाजी भ गेलाह । हुनका नाइन्हिये टा मे किताब मे पढने रहैथ जे कण-कण मे भगवान बसैत छैथि आ साएह सत मानि क जीवन कटैत रहलाह ।


एक बेर एक टा गाम मे बड मरखाह सांढ आबि गेलै भरि गाम मे तेहेन ने उछन्नर देने छल जे गामक लोक ओहि सांढ के डरे ओ रास्ता छोडि देने छल ।


एक दिन इ महात्मा जी ओहि गाम गेलाह भरि दिन घुमला बाद सांझ मे जखन घुमल जाईत रहैथ त वाएह रास्ता धर’ लगलाह ओहो ठाम नेना भुटका सब खेलाईत रहै.... बाबाजी के ओहि रस्ते जाईत देखि नेना भुटका सब मना केलकैन्ह । बाबाजी कहल्खिन्ह जे रे बच्चा तु सब की जाने गिया, कण-कण मे भगवान बास करता है – हमरा मे, तोरा मे, ओहि सांढ मे, सब मे भगवान रहता हैं ... आ जखन सांढ मे भगवान हैं त भग्वान हमरा कोना मारेगा ? हम त ओकर भक्त है...

नेना भुटका सब कहल्कैन्ह तहन जा तोहर भगवान बचेथुन्ह.....


बाबाजी आगु बढलाह ... सांढ दुरे स देखि नांगरि उठा दौरल आ बाबाजी के सिंघ पर उठा आरिक कात मे रगड’ लागल.... बाबाजी बाप-बाप करय लगलाह..... जाबत लोक सब लाठी-भाला आदि ल’ क’ दौरल ताबत बाबाजी बेदम भ गेलाह.... हुनकर मृत्यु भ गेल छलैन्ह.....



मुइलाबाद जहन भगवान स भेट भेलैन्ह ओ बाबाजी भगवान स पुछलखिन्ह त भगवान जबाब देलखिन्ह – बाउ, किताब मे पढबे टा नहि करू ओकरा गुनबो करियौ.... ज सब मे हम (भगवान) रहैत छी त ओ नेना भुटका सब जे आहां के मना केलक ओकरो मे त हम (भग्वान) छलियै... तें खाली पढबे टा नहि करियौ ओकरा गुनबो करियै.....





Friday, September 16, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 4, नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के........


एक टा पण्डितजी रहैथ, ओहि रज्यक राज कुमार के शिक्षा देनाई सेहो हुनके काज रहैन्ह। पण्डितजी अपन बेटा के सिखबथिन्ह जे - नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै......... जहन पण्डितजी बूढ भ’ क’ मरि गेलाह त हुनकर बेटा राज पण्डित भेलाह । ओहि राजा के बूढारी मे एकटा बेटा भेलैन्ह । राज्कुमार जहन 5 – 6 बरखक भेलाह त पण्डितजी स शिक्षा ग्रहण करय लगलाह्... .
एक दिन पण्डितजी के बुझेलैन्ह जे बाबू सबदिन कहैत छलाह जे - नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै...... से एकरा भजेबाक चाही .... एक दिन ओ एक टा बडका टा सन्दूक लेलाह ओहि मे खेबा-पिबाक व्यवस्था क देलखिन्ह आ राजा बेटा के कहलखिन्ह जे आहां अहि सन्दूक मे बन्द भ’ जाउ आ कतबो कियो सोर पारए त’ नहि बाजब... जाबे हम नहि कही ताबत नहि निकलब.......
पण्डितजी बहर एलाह आ एकटा चक्कू लेलाह आ चक्कूक संग अपन हाथ मे लाल रंग लगा लेलाह आ हडबडाईत पंडिताइन के कहल्थिन्ह जे हमरा बुते जुलूम भ गेलै, चक्कू स करचिकलम बनबैत काल उछट्टि क राजकुमारक नरेटी कटा गैलै...... ई सुनि पंडिताइन छती पीट’ लगली..... हरेलैन्ह ने फुरेलैन्ह पंडिताइन अपन पडोसिया चौकीदारक कनिया, जिनका स पंडिताइन के बड अपेछितारे छलैन्ह, दौड क कह’ गेलखिन्ह.... चौकीदारनी दौड क खेत मे हर जोतैत चौकीदार के कहलकै....... चौकीदार ने याएह सोचलक ने वाएह... सोझे आबि पंडित जी के डांड मे रस्सा लगेलक आ राजदरबार मे ल’ गेल । चौकीदार के भेलै जे अहि माथे प्रोमोसन भ जायत.....
राजदरबार मे सब आश्चर्यचकित भ गेल.... राजा कहलखिन्ह जे गुरु के रस्सा मे बान्हि अनर्थ केलै.. तुरत हिनका रस्सा खोल......
चौकीदार – महाराज, ई बरका पैघ गलती केलाह.....
राजा – कतबो पैघ गलती के लेल गुरु के रस्सा स बान्हल नई जा सकैत छै ... जल्दी हिनका खोल ....

चौकीदार खोलि देलकैन्ह, तहन राजा कहलखिन्ह - आब कह जे इ की केलाह ?
चौकीदार बाजल जे ई राजकुमार के हत्या क देलाह..
सब सन्न.....
सब दरबारी मे खुसुर-फुसुर होमय लागल..... कियो कहै जे हिनका शूली पर चढा दे त कियो कहै जे भकसी झोंका दियौन्ह.......
राजा बडी काल सोचला आ अंत मे फैसला लेलाह आ पण्डीतजी के कहल्खिन्ह – हमरा जीवन मे अहि स पैघ अनर्थ नहि होयत.... आहा बड पैघ अपराध केलहु परंतु आहां गुरु छी..... तथापि आहां हे सजा भेटत.... हम आहां के सजा दैत छी जे आहा सपरिवार चौबीस घंटा के अन्दर हमर राज्य स निकलि जाउ......

सभा समप्त भ गेल ...........
सब दरबारी खुसुर-फुसुर शुरु भ गेल...... समूचा राज्य मे हाहाकार मचि गेल ....

पण्डित जी गाम पर एलाह आ बक्सा मे स राजकुमार के निकालि आंगुर पकडि राजदरबार दिस बिदा भेलाह....

सब आश्चर्यचकित भ गेल.........

पण्डित जी राजदरबार पहुंचलाह । सब अचम्भीत ।
राजा पुछल्खिन्ह – की बात छियै पण्डित जी ?

पण्डित जी बजलाह – सरकार हमरा जनमहि स बाबू कहैत छलाह जे – नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै......... से हम गप्प के भजेलहु अछि ।

राजा बजला – त की भेल ?
अहि राज्य मे सबस’ पैघ आहां आ अहां के अहि स पैघ अनर्थ किछु नहि भ सकैत अछि तथापि आहां हमरा मर्यादाननुकूल दण्ड देलहु... तें ई त ठीके जे नीक करी त पैघ के आ बेजाए करी त पैघ के.....
दोसर - अहि चौकीदारनी स पण्डिताइन के बड अपेक्षितारे छलैन्ह आ चौकीदार सेहो हमरा बड नमस्कार पात करैत छल । समय परला पर ई ने बात बुझ’ लागल, सोझे पकडि लेलक बुझलक जे अहि माथे प्रोमोशन भ जाएत... तें ठीके बाबू कहैत छलाह जे छोट बुद्धी बला स संगत नहि करी
तेसर – हमर पण्डिताइन किछु सोच नहि लगलि आ सोझे चौकीदारनी के कहय गेलखिन्ह.... ते एहो ठीक जे जनानी के सब गप्प नहि कहियै....

बाबूक सब गप्प मील गेल । लिय’ अपन बेटा आ हम चललहु.......

 

Sunday, August 28, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 2, जहिया स काल धेलक ......


एक टा जोतखी जी रहैथ । प्रकाण्ड विद्वान । विद्वता मे समस्त राज्य मे हुनकर धाख चलैन्ह.... ।

भादव मास ... सन्ध्या काल... जोतखी जी लोटा ल क पैखाना दिस विदा भेलाह...

बुनछेक भेल रहै परंचु मेघ लागल रहै... गामक बाहर रस्ता कात मे मिरचैया गाछक झांखुर लग धोती खोलि बैसि गेलाह .....

जहां बैसला कि बोन मे नुकाएल साप पाछु मे काटि लेल्कैन्ह...

जोतखी जी धरफराएल गामक कन्हा भगता लग गेलाह ....

ताई दिन त गामक भगता सब बेसी मुर्खे होईत छल....

भगता झारय लग्लैन्ह आ कहैन्ह....

केहेन बेबेकूफ छी .... कुठाम मे साप काटि लेलक ..... जोतखी जी चुप रहला ....

भगता फेर हसैत कहल्कैन्ह.... धुर जोतखी जी केहेन बेबकूफ छी...... जोतखी जी फेर चूप.... ......

तेसर बेर भगता फेर कहल्कैन्ह ....

अहि बेर जोतखी जी के नहि रहल गेलैन्ह.........

कहलखिन्ह "हमरा सन विद्वान अहि राज मे नहि छौ ....... परंचु जहन स' ई काल ध' लेलकाए तहन स' टीके हम बेबकूफ भ गेलहु"

कहैत.... जोतखी जी विदा भ गेलाह .............



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बाबूक खिस्सा - भाग 1, गप्पक अर्थ



एक बेर एकटा राज दरबार मे नाच होईत रहैक, ताइ दिन नाच भरि रातुक होई, ब्रह्ममुहुर्त स कनि पहिले नटुवा के औंघी लागय गेलैक ई देखि नाच मे जे मूलगैन रहैक से ईशारा मे कहलकै - गये रे बहुतरे काले संजनम मन रंजनम.......आ नटुवा गाबय लागल ......


ई सुनि राजकुमार अपन गला के हार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....
राजकुमारी अपन गिरमोहार नटुवा के ईनाम मे द देलकै .....

सब के आश्चर्य भेलैक....

जहन पुछल गेलै त राजकुमार कहलकै ... 'हमर बाबु (राजा) 80 बरखक बूढ भ गेलाह तैयो एखन तक हमरा राजा नहि बनेलाह, आइ हम सोचने रहि जे राति मे तलवार स काटि दितियैन्ह... परंचु अहि नटुवा के शब्दक अर्थ हमरा लगि गेल'।

तकर बाद राजकुमारी स पुछल गेल त ओ कहलथि 'हमरा मंत्रीक बेटा स प्रेम अछि परंतु हमर बाबु (राजा), हमर विवाह के विरुद्ध छथि आ आइ हम दुनू गोटा भागि जैतौं मुदा ई नटुवा हमरा कहलक ....... हमरा अर्थ लागि गेल'


तें किछु लोक के गप्पक अर्थ आ लक्ष्मीनाथ गोसईं के पांतिक जे बुझाए से ने मनुख......



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