Friday, September 16, 2011

बाबूक खिस्सा - भाग 4, नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के........


एक टा पण्डितजी रहैथ, ओहि रज्यक राज कुमार के शिक्षा देनाई सेहो हुनके काज रहैन्ह। पण्डितजी अपन बेटा के सिखबथिन्ह जे - नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै......... जहन पण्डितजी बूढ भ’ क’ मरि गेलाह त हुनकर बेटा राज पण्डित भेलाह । ओहि राजा के बूढारी मे एकटा बेटा भेलैन्ह । राज्कुमार जहन 5 – 6 बरखक भेलाह त पण्डितजी स शिक्षा ग्रहण करय लगलाह्... .
एक दिन पण्डितजी के बुझेलैन्ह जे बाबू सबदिन कहैत छलाह जे - नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै...... से एकरा भजेबाक चाही .... एक दिन ओ एक टा बडका टा सन्दूक लेलाह ओहि मे खेबा-पिबाक व्यवस्था क देलखिन्ह आ राजा बेटा के कहलखिन्ह जे आहां अहि सन्दूक मे बन्द भ’ जाउ आ कतबो कियो सोर पारए त’ नहि बाजब... जाबे हम नहि कही ताबत नहि निकलब.......
पण्डितजी बहर एलाह आ एकटा चक्कू लेलाह आ चक्कूक संग अपन हाथ मे लाल रंग लगा लेलाह आ हडबडाईत पंडिताइन के कहल्थिन्ह जे हमरा बुते जुलूम भ गेलै, चक्कू स करचिकलम बनबैत काल उछट्टि क राजकुमारक नरेटी कटा गैलै...... ई सुनि पंडिताइन छती पीट’ लगली..... हरेलैन्ह ने फुरेलैन्ह पंडिताइन अपन पडोसिया चौकीदारक कनिया, जिनका स पंडिताइन के बड अपेछितारे छलैन्ह, दौड क कह’ गेलखिन्ह.... चौकीदारनी दौड क खेत मे हर जोतैत चौकीदार के कहलकै....... चौकीदार ने याएह सोचलक ने वाएह... सोझे आबि पंडित जी के डांड मे रस्सा लगेलक आ राजदरबार मे ल’ गेल । चौकीदार के भेलै जे अहि माथे प्रोमोसन भ जायत.....
राजदरबार मे सब आश्चर्यचकित भ गेल.... राजा कहलखिन्ह जे गुरु के रस्सा मे बान्हि अनर्थ केलै.. तुरत हिनका रस्सा खोल......
चौकीदार – महाराज, ई बरका पैघ गलती केलाह.....
राजा – कतबो पैघ गलती के लेल गुरु के रस्सा स बान्हल नई जा सकैत छै ... जल्दी हिनका खोल ....

चौकीदार खोलि देलकैन्ह, तहन राजा कहलखिन्ह - आब कह जे इ की केलाह ?
चौकीदार बाजल जे ई राजकुमार के हत्या क देलाह..
सब सन्न.....
सब दरबारी मे खुसुर-फुसुर होमय लागल..... कियो कहै जे हिनका शूली पर चढा दे त कियो कहै जे भकसी झोंका दियौन्ह.......
राजा बडी काल सोचला आ अंत मे फैसला लेलाह आ पण्डीतजी के कहल्खिन्ह – हमरा जीवन मे अहि स पैघ अनर्थ नहि होयत.... आहा बड पैघ अपराध केलहु परंतु आहां गुरु छी..... तथापि आहां हे सजा भेटत.... हम आहां के सजा दैत छी जे आहा सपरिवार चौबीस घंटा के अन्दर हमर राज्य स निकलि जाउ......

सभा समप्त भ गेल ...........
सब दरबारी खुसुर-फुसुर शुरु भ गेल...... समूचा राज्य मे हाहाकार मचि गेल ....

पण्डित जी गाम पर एलाह आ बक्सा मे स राजकुमार के निकालि आंगुर पकडि राजदरबार दिस बिदा भेलाह....

सब आश्चर्यचकित भ गेल.........

पण्डित जी राजदरबार पहुंचलाह । सब अचम्भीत ।
राजा पुछल्खिन्ह – की बात छियै पण्डित जी ?

पण्डित जी बजलाह – सरकार हमरा जनमहि स बाबू कहैत छलाह जे – नीक करी त पैघ के, बेजाए करी त पैघ के, छोट बुद्धि बला स संगत नहि करी आ जनानी के सब गप्प नहि कहियै......... से हम गप्प के भजेलहु अछि ।

राजा बजला – त की भेल ?
अहि राज्य मे सबस’ पैघ आहां आ अहां के अहि स पैघ अनर्थ किछु नहि भ सकैत अछि तथापि आहां हमरा मर्यादाननुकूल दण्ड देलहु... तें ई त ठीके जे नीक करी त पैघ के आ बेजाए करी त पैघ के.....
दोसर - अहि चौकीदारनी स पण्डिताइन के बड अपेक्षितारे छलैन्ह आ चौकीदार सेहो हमरा बड नमस्कार पात करैत छल । समय परला पर ई ने बात बुझ’ लागल, सोझे पकडि लेलक बुझलक जे अहि माथे प्रोमोशन भ जाएत... तें ठीके बाबू कहैत छलाह जे छोट बुद्धी बला स संगत नहि करी
तेसर – हमर पण्डिताइन किछु सोच नहि लगलि आ सोझे चौकीदारनी के कहय गेलखिन्ह.... ते एहो ठीक जे जनानी के सब गप्प नहि कहियै....

बाबूक सब गप्प मील गेल । लिय’ अपन बेटा आ हम चललहु.......

 

No comments:

Post a Comment