Thursday, September 22, 2011

बाबूक खिस्सा – भाग 5 – पढबे टा नहि करी ओकरा गुणबो करी ....


एक टा आदमी छलाह । हुनका आध्यात्मिक किताब पढै मे बड मोन लगैत रहैन्ह । धिरे-धिरे ओ बाबाजी भ गेलाह । हुनका नाइन्हिये टा मे किताब मे पढने रहैथ जे कण-कण मे भगवान बसैत छैथि आ साएह सत मानि क जीवन कटैत रहलाह ।


एक बेर एक टा गाम मे बड मरखाह सांढ आबि गेलै भरि गाम मे तेहेन ने उछन्नर देने छल जे गामक लोक ओहि सांढ के डरे ओ रास्ता छोडि देने छल ।


एक दिन इ महात्मा जी ओहि गाम गेलाह भरि दिन घुमला बाद सांझ मे जखन घुमल जाईत रहैथ त वाएह रास्ता धर’ लगलाह ओहो ठाम नेना भुटका सब खेलाईत रहै.... बाबाजी के ओहि रस्ते जाईत देखि नेना भुटका सब मना केलकैन्ह । बाबाजी कहल्खिन्ह जे रे बच्चा तु सब की जाने गिया, कण-कण मे भगवान बास करता है – हमरा मे, तोरा मे, ओहि सांढ मे, सब मे भगवान रहता हैं ... आ जखन सांढ मे भगवान हैं त भग्वान हमरा कोना मारेगा ? हम त ओकर भक्त है...

नेना भुटका सब कहल्कैन्ह तहन जा तोहर भगवान बचेथुन्ह.....


बाबाजी आगु बढलाह ... सांढ दुरे स देखि नांगरि उठा दौरल आ बाबाजी के सिंघ पर उठा आरिक कात मे रगड’ लागल.... बाबाजी बाप-बाप करय लगलाह..... जाबत लोक सब लाठी-भाला आदि ल’ क’ दौरल ताबत बाबाजी बेदम भ गेलाह.... हुनकर मृत्यु भ गेल छलैन्ह.....



मुइलाबाद जहन भगवान स भेट भेलैन्ह ओ बाबाजी भगवान स पुछलखिन्ह त भगवान जबाब देलखिन्ह – बाउ, किताब मे पढबे टा नहि करू ओकरा गुनबो करियौ.... ज सब मे हम (भगवान) रहैत छी त ओ नेना भुटका सब जे आहां के मना केलक ओकरो मे त हम (भग्वान) छलियै... तें खाली पढबे टा नहि करियौ ओकरा गुनबो करियै.....





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